Banke Bihari : श्री कृष्ण जी, जिन्हें हम बांके बिहारी के नाम से भी जानते हैं, भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। उनके अनेक नाम और रूप हैं, लेकिन बांके बिहारी का नाम विशेष रूप से वृंदावन के भक्तों के दिलों में बसता है। इस नाम के पीछे की कहानी बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक है।’बांके’ शब्द का अर्थ है, जो हमेशा बांकपन (मस्त अदा) से भरा हो। श्री कृष्ण जी का रूप, उनका नृत्य और उनकी अदाएं बांकपन से परिपूर्ण हैं। उनके हर क्रियाकलाप में एक विशेष प्रकार का मोहित करने वाला आकर्षण है। यह शब्द उनकी इसी विशेषता को दर्शाता है।
‘बिहारी’ शब्द का अर्थ है, जो वृंदावन में बास करने वाला हो। वृंदावन श्री कृष्ण जी का लीला स्थल है, जहां उन्होंने अपने बाल्यकाल के अनेक अद्भुत और मनमोहक लीला रचाई। बिहारी शब्द उनके इस विशेष स्थल के प्रति उनकी निकटता को दर्शाता है।वृंदावन का महत्व भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास में अद्वितीय है। यह वह पवित्र भूमि है जहां श्री कृष्ण ने अपनी बाल्यकाल की लीलाएं रचीं। यह स्थल उनके अद्वितीय प्रेम और भक्ति का केंद्र है। वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर इस भूमि की धार्मिकता को और भी बढ़ाता है।वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर श्री कृष्ण जी को समर्पित प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां श्री कृष्ण जी की बांके बिहारी रूप में पूजा की जाती है।
इस मंदिर में दर्शन करने से भक्तों को श्री कृष्ण जी की बांकपन से भरी लीलाओं का अनुभव होता है।श्री कृष्ण जी का नाम बांके बिहारी उनके अद्वितीय बांकपन और वृंदावन के प्रति उनकी निकटता को दर्शाता है। यह नाम उनके भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है और उनकी लीलाओं का स्मरण कराता है। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में जाकर श्री कृष्ण जी के इस अद्वितीय रूप का अनुभव किया जा सकता है।
हमारे लाला का नाम Banke Bihari क्यों पड़ा है ?
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जब सजीले सलोनेपन कीबात आती है तो कृष्ण की छवि ही मन में उभरती है. कृष्ण जी का एक नामबांकेबिहारी है
Banke Bihari : श्रीकृष्ण हर मुद्रा मेंबांकेबिहारीनहीं कहे जाते बल्कि “होठों पर बांसुरी लगाए”, “कदम्ब के वृक्ष से कमर टिकाए” हुए,”एक पैर में दूसरे को फंसाए हुए” तीन कोण पर झुकी हुई मुद्रा में ही उन्हें बांकेबिहारी कहा जाताहै श्री कृष्ण जी का बाल्यकाल अद्वितीय लीलाओं से भरा हुआ है। उनकी माखन चोरी की लीलाएं, गोपियों के साथ रासलीला और कालिया नाग का दमन उनके अद्वितीय बांकपन को दर्शाते हैं। इन कहानियों में उनका हर क्रियाकलाप भक्तों को मोहित कर देता है।
भगवान तीन जगह से टेढ़े है.होठ,कमर और पैर. इसलिए उन्हें त्रिभंगी भी कहा जाता है.भगवान श्री कृष्ण तीन जगह से क्यों टेढ़े है इसका सम्बन्ध उनकी जन्म कथा से है रासलीला श्री कृष्ण जी और गोपियों के बीच के प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। इस लीला में उनका नृत्य, उनके बांकपन का सर्वोत्तम उदाहरण है। गोपियों के साथ उनकी मस्ती और उनकी प्रेम भरी नटखट अदाएं भक्तों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती हैं।
जब गोकुल में भगवान के जन्म का पता चला तो सारे ग्वाल -बाल नन्द बाबा के घर बधाईयाँ ले-लेकर आये. नन्द बाबा की दो बहनें थी, नन्दा और सुनंदा, जो लाला के जन्म से पहले ही आई हुई थी बांके बिहारी मंदिर में प्रतिदिन की आरती एक विशेष धार्मिक अनुभव है। इस आरती में भक्तों की भक्ति और प्रेम का सागर उमड़ता है। श्री कृष्ण जी की मूर्ति को फूलों और आभूषणों से सजाया जाता है और भक्तजन भजन-कीर्तन के माध्यम से उनकी आराधना करते हैं।
Banke Bihari : जब बाल कृष्ण के जन्म को दो तीन घंटे हो गए तो सुनन्दा जी ने यशोदा जी से कहा – भाभी ! लाला को जन्म लिए इतनी देर हो गई, अब तक लाला को आपने दूध नहीं पिलाया वृंदावन में बांके बिहारी की भक्ति में अनेक उत्सव मनाए जाते हैं। जन्माष्टमी, होली और राधाष्टमी जैसे पर्वों पर यहां की धूमधाम देखते ही बनती है। इन पर्वों में श्री कृष्ण जी के बांकपन और उनकी लीलाओं को याद करते हुए भक्तजन आनंदित होते हैं।
- यशोदा जी ने कहा -हाँ बहिन! आप ठीक कह रही हो.सुनन्दा जी बोली -भाभी! मै प्रसूतिका गृह के बाहर खड़ी हो जाती हूँ, किसी को भी अन्दर नहीं आने दूँगी, आप लाला को दूध पिला दीजिये इतना कहकर सुनंदा जी प्रसूतिका गृह के बाहर खड़ी हो गई.अब यशोदा जी जैसे ही बाल कृष्ण को अपनी गोद में उठाने लगी, तो बाल कृष्ण इतने कोमल थे कि यशोदा जी की उगलियाँ उन्हें चुभी यशोदा जी ने बहुत प्रयास किया, पर उन्हें यही लगा कि लल्ला इतना कोमल है कि मै इसे गोद में उठाऊँगी तो इसे मेरी उगलियाँ चुभ जायेगी अब माता यशोदा जी ने लाला को तो पलग पर ही लिटा दिया और स्वयं टेढ़ी होकर लाला को दूध पिलाने लगी.
- भगवान ने एक घूँट दूध पिया, दो घूँट दूध पिया जैसे ही तीसरा घूँट पीने लगे, तो बाहर खड़ी सुनंदा जी ने सोचा बड़ी देर हो गई अब तो लाला ने दूध पी लिया होगा और जैसे ही उन्होंने खिडकी से अन्दर झाँका तो तुरंत बोल पड़ी भाभी! लाला को प्रथम बार टेढ़े होकर दूध मत पिलाओ,जितने घूँट दूध ये पिएगा उतनी जगह से टेढ़ा हो जायेगा.इतना सुनते ही यशोदा जी झट हट गई, तब तक् बाल कृष्ण ने तीसरे घूँट दूध भी गटक लिया तीन घूँट दूध पीने के कारण कृष्ण तीन जगह से टेढे हो गए अर्थात “बाँके” और भगवान के जन्म कुंडली का नाम “बिहारी” था इस तरह बाँके बिहारी श्री कृष्ण का एक नाम बाँके बिहारी हुआ*
“टेढ़े सुन्दर नैन, टेढ़े मुख कहे बैन,
टेढो ही मुकुट बात,टेढ़ी कछु कह गयों,
टेढ़े घुंघुराले बाल, टेढ़ी गले फूल माल,
टेढ़े ही गुलाक,मेरे चित्त में बसे गयों,
टेढे पग ऊपर नुपुर झंकार करे,
टेढ़े बाँसुरी बजाय, चित्त चुरे गयो,
ऐसे टेढ़े टेढ़ीन को ध्यान धरे माया राम,
लत पटि पाग सो, लपेट मन ले गयो “
Banke Bihari : संस्कृत में भङ्ग का मतलब भी टेढ़, तिरछा, मोड़ा हुआ, सर्पिल, घुमावदार आदि ही होता है. गौर करें भंगिमा शब्द पर हाव-भाव के लिए नाटक या नृत्य में अक्सर भंगिमाएं बनाई जाती हैं. चेहरे पर विभिन्न हाव-भाव दर्शाने के लिएआंखों, होठों की वक्रगति से ही विभिन्न मुद्राएं बनाई जाती हैं जोभंगिमा कहलाती हैं इसी में बांकी चितवन या तिरछी चितवन को याद किया जा सकता है जिसका अर्थ ही चाहत भरी तिरछी नज़र होता है. श्रीकृष्ण की बांकेबिहारी वालीमुद्रा को इसीलिए त्रिभंगी मुद्रा भी कहते हैं लेकिन हमारे बाँके बिहारी जी के कहने ही क्या है , इनकी तो हर एक अदा टेढ़ी है
“तेरा टेढा रे मुकुट, तेरी टेढ़ी रे अदा”
हमें तेरा दीवाना बना दिया.
इस बाँके का तो सब कुछ बांका है-
“बाँके है नंद बाबा, और यशोमती,
बांकी घड़ी जन्मे है बिहारी,
बाँके कन्हैया के बाँके ही भ्रात
लड़ाके बड़े हलमुषलधारी
बांकी मिली दुल्हिन जग वन्दिनी
और बाँके गोपाल के बाँकेपुजारी
भक्तन दर्शन देन के कारण
झाँकी झरोखा में बाँके बिहारी”*
Banke Bihari :नंदबाबा और यशोदा जी भी टेढ़ी है, बाल कृष्ण का जन्म ही हो गया उन्हें पता ही नहीं , जन्म भी श्री कृष्ण का हुआ, तो रात को १२ बजे , उनके भाई बलदाऊ जी, जरा-सी बात पर ही हलमूशर उठा लेते है , और दुल्हन यानि राधा रानी वे भी बांकीहै दुनिया कृष्ण के चरण दबाती है पर हमारी राधा रानी जी, कृष्ण से ही चरण दबवाती है , और उनके पुजारी भी बाँके है वृंदावन में भक्त तो दर्शन करने जाते है, और पुजारी जी बार-बार पर्दा लगा देते है. तो हुआ न उस बाँके का सब कुछ बांका
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