Jagannath Rath Yatra : भगवान जगन्नाथ हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। ये भगवान विष्णु के एक रूप माने जाते हैं। उनके साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी विराजमान होती हैं। पुरी, ओडिशा में स्थित जगन्नाथ मंदिर, इन्हीं को समर्पित है। मंदिर की महिमा और सुंदरता के कारण यह स्थल विश्वप्रसिद्ध है।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। भगवान जगन्नाथ का स्वरूप भी अद्वितीय है। उनकी मूर्तियों का आकार और रंग विशिष्ट होते हैं। यही विशेषता उन्हें अन्य देवताओं से अलग बनाती है।भगवान जगन्नाथ का नाम संस्कृत शब्द ‘जगन्नाथ’ से बना है। इसका अर्थ है ‘संसार के स्वामी’।
वे समस्त जीवों के पालनहार और रक्षक माने जाते हैं। उनकी पूजा अर्चना से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होता है।भगवान जगन्नाथ की महिमा और उनकी आराधना से जुड़ी कई कहानियाँ हैं। उनमें से एक प्रमुख कथा उनके जन्म और प्रतिष्ठा की है। कहते हैं कि भगवान ने स्वयं को मूर्तियों के रूप में प्रकट किया। यह घटना महाभारत काल की मानी जाती है।
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति:-
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति विशेष रूप से काष्ठ (लकड़ी) की बनी होती है। यह अन्य देवताओं की मूर्तियों से अलग है। हर बारह साल में इन मूर्तियों का नवकलेवर (पुनर्निर्माण) होता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया भी बहुत रोचक है। इसमें विशेष प्रकार की लकड़ी का उपयोग होता है। यह लकड़ी ‘दरु’ नामक वृक्ष से प्राप्त की जाती है।
दरु वृक्ष भी चुनिंदा स्थानों पर ही पाया जाता है। मूर्ति निर्माण के लिए योग्य वृक्ष की पहचान करना कठिन होता है।जब दरु वृक्ष की पहचान होती है, तब उसकी पूजा की जाती है। पूजा के बाद वृक्ष को काटा जाता है। इस प्रक्रिया में कई धार्मिक विधियों का पालन होता है। इसके बाद वृक्ष की लकड़ी से मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। यह कार्य केवल विशेष पुजारी ही कर सकते हैं।
मूर्तियाँ बनाने की प्रक्रिया में कई रहस्यमयी बातें भी होती हैं। जैसे कि मूर्तियों के नेत्र (आंखें) विशेष प्रकार से बनाई जाती हैं। इसके लिए पुजारियों को मंत्रजप करना होता है। इसी प्रकार, मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा भी एक रहस्यमयी विधि है।मूर्तियों का स्वरूप भी बहुत विशेष होता है। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का आकार गोल होता है। उनके नेत्र बड़े और गोल होते हैं। इसी प्रकार बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ भी विशिष्ट आकार में होती हैं।
Rath Yatra का इतिहास:-
रथ यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है। इसका इतिहास सदियों पुराना है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की होती है। हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को यह यात्रा निकाली जाती है।रथ यात्रा की शुरुआत किसने की, इसके बारे में कई कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार, इस Rath Yatra की शुरुआत राजा इंद्रद्युम्न ने की थी।
राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बड़े भक्त थे। उन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों की स्थापना की थी।एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के जीवन से यह यात्रा जुड़ी है। कहते हैं कि द्वारका से मथुरा जाते समय भगवान कृष्ण ने ऐसी यात्रा की थी। इसी घटना की याद में रथ यात्रा निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ को भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है।
रथ यात्रा का आयोजन बहुत धूमधाम से होता है। इसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। यात्रा के दौरान तीन रथों का निर्माण होता है। ये रथ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए बनाए जाते हैं। रथों का निर्माण भी विशेष प्रकार से होता है।रथ यात्रा की परंपरा पुरानी होने के बावजूद, इसका उत्साह हर साल बढ़ता ही जा रहा है। हर साल नए भक्त जुड़ते हैं और इस महान धार्मिक आयोजन का हिस्सा बनते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
Rath Yatra की तैयारी:-
रथ यात्रा की तैयारी महीनों पहले से शुरू होती है। रथों का निर्माण विशेष प्रकार की लकड़ी से होता है। यह लकड़ी जंगलों से लाई जाती है। रथ निर्माण के लिए कुशल कारीगरों की टीम होती है। ये कारीगर पीढ़ियों से इस कार्य को करते आ रहे हैं।रथ निर्माण में कई चरण होते हैं। पहले रथ का ढाँचा तैयार किया जाता है। फिर उस पर नक्काशी की जाती है।
रथों को रंग-बिरंगे कपड़ों और सजावट से सजाया जाता है। प्रत्येक रथ का आकार और डिजाइन अलग-अलग होता है।भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है। बलभद्र के रथ का नाम तालध्वज है। सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। इन रथों की सजावट बहुत भव्य होती है। रथ यात्रा के दिन इन्हें खींचने के लिए हजारों लोग जुटते हैं।
Rath Yatra के दिन विशेष प्रकार के भोग का आयोजन होता है। भगवान जगन्नाथ को ‘महालभोग’ अर्पित किया जाता है। यह भोग विशेष प्रकार के व्यंजनों से बना होता है। भोग का वितरण भी श्रद्धालुओं में किया जाता है।रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों को रथों पर विराजमान किया जाता है। इस प्रक्रिया में कई धार्मिक विधियों का पालन होता है। पुजारी विशेष मंत्रों का उच्चारण करते हैं। इसके बाद रथों को खींचने की प्रक्रिया शुरू होती है।
Rath Yatra का महत्व:-
रथ यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह यात्रा भक्तों के लिए भगवान के साक्षात्कार का अवसर है। रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर जाते हैं। यह यात्रा नौ दिनों की होती है।गुंडिचा मंदिर को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। यहाँ भगवान कुछ दिन विश्राम करते हैं। फिर वे वापस अपने मंदिर लौटते हैं।
इस Rath Yatra का हर क्षण धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है।रथ यात्रा के दौरान कई प्रकार के धार्मिक आयोजन होते हैं। इनमें कीर्तन, भजन और नृत्य प्रमुख हैं। यात्रा के समय भक्तजन भगवान के रथ को खींचते हैं। यह कार्य बहुत पुण्यकारी माना जाता है। कहते हैं कि रथ खींचने से जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं।
Rath Yatra का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक भी है। इस यात्रा के माध्यम से समाज के सभी वर्ग एकजुट होते हैं। अमीर-गरीब, उच्च-नीच का भेदभाव समाप्त हो जाता है। सभी भक्त मिलकर भगवान का गुणगान करते हैं।रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का दर्शन करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है। कहते हैं कि भगवान स्वयं रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देने आते हैं। यह अवसर केवल पुरी में ही मिलता है। इसलिए यहाँ हर साल लाखों लोग आते हैं।
Rath Yatra की परंपरा:-
रथ यात्रा की परंपरा बहुत पुरानी है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। हर साल इसे उसी उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है। रथ यात्रा के दौरान कई धार्मिक विधियों का पालन होता है। इनमें प्रमुख है रथ खींचने की परंपरा।रथ खींचने की परंपरा का धार्मिक महत्व है। इसे बहुत पुण्यकारी माना जाता है। रथ खींचने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
हर कोई इस पुण्य कार्य का हिस्सा बनना चाहता है। कहते हैं कि रथ खींचने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।Rath Yatra की एक और प्रमुख परंपरा है भोग का वितरण। भगवान जगन्नाथ को विभिन्न प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। इन भोगों का वितरण भक्तों में किया जाता है। यह परंपरा भी सदियों से चली आ रही है। भोग में विशेष प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं।
रथ यात्रा के दौरान नृत्य और संगीत का भी आयोजन होता है। भक्तजन भजन-कीर्तन करते हैं। यह यात्रा एक महोत्सव का रूप ले लेती है। इसमें धार्मिकता के साथ-साथ आनंद और उल्लास भी शामिल होता है।Rath Yatra की परंपरा में धार्मिक विधियों का पालन भी महत्वपूर्ण है। प्रत्येक विधि का अपना महत्व और उद्देश्य है। इन विधियों का पालन करना धार्मिक दृष्टि से आवश्यक है। यह भगवान जगन्नाथ की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है।
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