Love Marriage- एक ऐसा विषय है जो हमेशा से ही ज्योतिष शास्त्र में चर्चा का केंद्र रहा है। कुंडली के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति के जीवन में लव मैरिज का योग है या नहीं। जन्मतिथि के आधार पर कुंडली का विश्लेषण कर सकते हैं। इससे आप यह जान सकते हैं कि लव मैरिज के कितने योग हैं और वे कितने प्रबल हैं।
लव मैरिज के योग :-
- ग्रहों की स्थिति और उनकी दशा भी प्रेम विवाह के योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विशेष रूप से शुक्र और मंगल का स्थान लव मैरिज के योग के लिए महत्वपूर्ण होता है। जब शुक्र और मंगल का संबंध सप्तम भाव से होता है, तो प्रेम विवाह की संभावना बढ़ जाती है। मंगल उर्जा और साहस का प्रतीक है, जबकि शुक्र प्रेम और आकर्षण का। इनके संयोजन से जातक का प्रेम विवाह सफल हो सकता है।
- राहु और केतु का प्रभाव भी प्रेम विवाह के योग को प्रभावित कर सकता है। राहु इच्छाओं और आकांक्षाओं का ग्रह है। यह जातक की जीवनशैली में बदलाव ला सकता है। जब राहु का संबंध पंचम भाव से होता है, तो व्यक्ति का प्रेम विवाह होने की संभावना होती है। वहीं, केतु आध्यात्मिकता और त्याग का प्रतीक है। अगर केतु का संबंध सप्तम भाव से होता है, तो जातक का विवाह समाज के परंपरागत तरीकों से अलग हो सकता है।
- बुध और सूर्य भी लव मैरिज के योग में योगदान कर सकते हैं। बुध बुद्धिमानी और संचार का ग्रह है, जबकि सूर्य आत्मा और व्यक्तित्व का प्रतीक है। जब ये दोनों ग्रह पंचम या सप्तम भाव में होते हैं, तो प्रेम विवाह के योग बनते हैं। विशेष रूप से बुध की स्थिति जातक के विचारों और दृष्टिकोण में लचीलापन लाती है। यह प्रेम विवाह के योग को सुदृढ़ करता है।
कुंडली में प्रेम विवाह के योग को कैसे पहचानें :-
- कुंडली में प्रेम विवाह के योग की पहचान के लिए कुछ प्रमुख संकेत होते हैं। सबसे पहले सप्तम भाव और उसके स्वामी का अध्ययन करना चाहिए। अगर सप्तम भाव का स्वामी शुक्र, राहु या मंगल से संबंधित है, तो प्रेम विवाह के योग प्रबल होते हैं। इसके अलावा, पंचम भाव का अध्ययन भी आवश्यक होता है। पंचम भाव प्रेम और रोमांस का प्रतीक है, इसलिए इसका स्वामी और ग्रह स्थिति भी महत्वपूर्ण होती है।
- यदि पंचम भाव का स्वामी सप्तम भाव में स्थित हो, तो प्रेम विवाह के योग बनते हैं। इसके साथ ही, अगर शुक्र, राहु या मंगल पंचम या सप्तम भाव में होते हैं, तो लव मैरिज के योग बनते हैं। इन स्थितियों में जातक का प्रेम संबंध विवाह तक पहुंच सकता है। इसके अलावा, चंद्रमा और शुक्र का संबंध भी प्रेम विवाह के योग को दर्शाता है।
- जब कुंडली में पंचम और सप्तम भाव का संबंध होता है, तो यह प्रेम विवाह का संकेत हो सकता है। अगर कुंडली में राहु और शुक्र का योग होता है, तो जातक का प्रेम विवाह होता है। यह योग जातक के जीवन में प्रेम विवाह के लिए परिस्थितियों को अनुकूल बनाता है। राहु जातक को परंपरागत सीमाओं को पार करने की प्रेरणा देता है, जिससे प्रेम विवाह संभव हो सकता है।
Love Marriage के योग और उनके उपाय :-
- अगर कुंडली में प्रेम विवाह के योग नहीं बन रहे हैं, तो कुछ उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले शुक्र और मंगल को मजबूत करने के उपाय किए जा सकते हैं। इसके लिए शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की पूजा करना शुभ होता है। साथ ही, मंगला गौरी व्रत का पालन करना भी लाभकारी होता है। ये उपाय जातक के जीवन में प्रेम विवाह के योग को सुदृढ़ कर सकते हैं।
- इसके अलावा, राहु और केतु के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए उपाय किए जा सकते हैं। राहु के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए राहु कवच का पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही, केतु के प्रभाव को कम करने के लिए केतु कवच का पाठ करना लाभकारी होता है। इन उपायों से जातक के जीवन में प्रेम विवाह की संभावना बढ़ सकती है।
- यदि जातक की कुंडली में प्रेम विवाह के योग कमजोर हैं, तो बुध और सूर्य के उपाय भी किए जा सकते हैं। बुध के लिए बुधवार का व्रत और बुध स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है। सूर्य के लिए रविवार का व्रत और सूर्य नमस्कार का अभ्यास करना लाभकारी होता है। इन उपायों से प्रेम विवाह के योग को सुदृढ़ किया जा सकता है।
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FAQ’s
1. प्रेम विवाह के योग कुंडली में कैसे पहचानें?
कुंडली में सप्तम और पंचम भाव का अध्ययन करें। शुक्र, राहु, मंगल का संबंध देखें।
2. लव मैरिज के लिए कौन-कौन से ग्रह जिम्मेदार होते हैं?
मुख्य रूप से शुक्र, मंगल, राहु और बुध ग्रह प्रेम विवाह के योग बनाते हैं।
3. अगर कुंडली में लव मैरिज के योग नहीं हैं तो क्या करें?
उपाय के रूप में शुक्र, मंगल, राहु और बुध के लिए व्रत और स्तोत्र का पाठ करें।
4. क्या राहु और केतु का प्रेम विवाह पर प्रभाव पड़ता है?
हाँ, राहु इच्छाओं का और केतु परंपरागत बाधाओं को तोड़ने का संकेत देता है।
5. क्या उपाय प्रेम विवाह के योग को मजबूत कर सकते हैं?
हाँ, देवी लक्ष्मी की पूजा, मंगला गौरी व्रत, राहु और केतु कवच का पाठ सहायक हो सकते हैं।
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