Low planet in कुंडली : भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार हमारी Kundli में उच्च स्थान एवं नीच स्थान के ग्रहों के फल देखने को मिलते हैं उच्च स्थान जाने की लगन केंद्र एवं त्रिकोण स्वर्गीय हो एवं अपनी उच्च राशि में हो तो उनका फल शीघ्र शीघ्र प्राप्त होता है और फल की अपेक्षा भी सही मानी जाती है लेकिन कुछ कर्म बस यदि कोई ग्रह अपनी नीच राशि में बैठा है तो उसका फल भी विपरीत कहा गया है उस व्यक्ति को काफी नुकसान एवं भाग्य नीचे तक की ओर जाने लगता है जिस व्यक्ति को कम आदि व्यसनों में पड़ जाता है जिससे उसके जीवन की बर्बादी शुरू हो जाती है आज हम विचार करते हैं कि नीच ग्रह का फल जातक को कैसे मिलता है और इसका क्या कारण है कि ग्रह नीच की राशि में हो तो उसका बाल काफी कम हो जाता है जिसके कारण वह अपना शुभ फल जातक को नहीं दे पाता लेकिन अपना बुरा प्रभाव जातक को देता रहता है किसी भी नीचे ग्रह या नीच राशि में बैठे हुए ग्रह को देखते ही उसके पूरे फल के बारे में नहीं सोचना चाहिए कुछ ऐसी परिस्थितियों भी हो जाती हैं जिसमें नीच ग्रह भी कभी-कभी अच्छा फल दे सकते हैं इसलिए वैदिक ज्योतिष के अनुसार सही ढंग से Kundli का अध्ययन करना चाहिए ग्रहों कि सही दशा का ध्यान भी अवश्य करें दशा का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है आप ग्रहों के निवारण वैदिक मन्त्रों के जाप से भी कर सकते हो नीच ग्रहों का फल व्यक्ति के जीवन पर यातनाएं और चुनौतियां डाल सकता है। इन ग्रहों की दशा में व्यक्ति अपार संघर्ष और उतावला महसूस कर सकता है। कुंडली में नीच ग्रह की स्थिति व्यक्ति के भाग्य पर भी प्रभाव डाल सकती है। नीच ग्रह के अशुभ फलों से बचने के लिए विचारशीलता, सावधानी, और धैर्य का उपयोग करना आवश्यक होता है। एवं किसी विशेष से परामर्श लेना चाहिए। नीच के ग्रह के बुरे फल जातक को मिलते है ऐसा माना जाता मेरा ये मानना है !
kundli में नीच फल
नीच ग्रह एवं नीच राशि का फल:-दोस्तों अक्सर लोग नीच ग्रह के बुरे फल को भी गिनते हैं लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ग्रह नीच का हो या उच्च का हो उसके शुभ अशुभ प्रभाव भिन्न-भिन्न हो सकते हैं क्योंकि कुंडली में ग्रहों पर किसी न किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती हो जा कोई शुभ ग्रह उसके स्वर्गीय हो उसके साथ बैठा हो जा वह केंद्र एवं त्रिकोण में बैठकर नीचे हो रहा हो तब भी उसका फल शुभ ही माना जाता है यदि कोई भी ग्रहणीज राशि का हो इसका यह मतलब होगा कि उसे ग्रह में उसके कार्य तत्व की कमी हो सकती है मतलब कि उसका कार्य करने की जो अवधि है वह काम हो सकती है और वह अच्छा फल काम दे सकता है जिन जातकों की कुंडली में जिन भागों का स्वामी उनसे संबंधित पूर्ण फल देता है भाग्य भाव का मालिक नीचे का है तो इसका मतलब यह नहीं की व्यक्ति का भाग्य उदय नहीं होगा जब भी भागेश की दशा आएगी एवं भाग्यश का अंतर आएगा तो व्यक्ति का भाग्य अवश्य ही उदय होगा।
ग्रह का नीच दोष निवारण :–सबसे पहले तो हमें यह देखना चाहिए कि कुंडली में ग्रह का नीचे दोष भंग हो रहा है या नहीं नीचे दोष को भंग करने के लिए माना जाता है कि यदि कोई ग्रह किसी राशि में नीचे का है और उसे राशि का स्वामी उसे ग्रह के साथ या उसे ग्रह को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखा हो या बली होकर केंद्र में अथवा त्रिकोण में बैठा हूं जैसे वृश्चिक के चंद्रमा के साथ मंगल हो या मंगल की पूर्ण दृष्टि चंद्रमा पर हो या मंगल स्वराशि या उच्च राशि में केंद्र में स्थित हो जाती त्रिकोण में बैठा हो साथ ही साथ यदि किसी नीच ग्रह के साथ उच्च का ग्रह हो तो भी नीचे दोष भंग हो जाता है जैसे मकर राशि के गुरु के साथ भी मगर में ही मंगल हो इसके साथ ही यदि कोई ग्रह लग्न कुंडली में हो तो नीचे का हो लेकिन नवमांश में उच्च का हो तो उसका नीच भंग हो जाता है यह नीच भंग दोष कहा जाता है इससे जो नीच ग्रह का दोष है वह दूर हो जाता है और व्यक्ति का जीवन सुख समृद्धि से भरा जाता है व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी प्रकार की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती । कोई ग्रह की नीचता भंग नही हो रही हो तो उसका फल हम कैसे मिलेगा,उसके लिय सबसे पहले तो हम देखेंगे की उस नीच के ग्रह की राशि का स्वामी की स्थिति कैसी है यदि उसकी स्थिति अच्छी है तो उस नीच के ग्रह के अशुभ फल में कमी होगी।
kundli विचार :-मुख्य बात है की ग्रह किस नक्षत्र में है।जैसे हम चन्द्र को लेते है। चन्द्र हमारी कुंडली में मन का कारक है। चन्द्र नीच होने पर जातक दिल का कमजोर होता है बहुत जल्दी व्यथित होने वाला होता है लेकिन मुख्य प्रभाव इस बात का है की चन्द्र किस नक्षत्र में है। विर्श्चिक राशि में तीन नक्षत्रआते है विशाखा अनुराधा और ज्येस्ठा।अब विशाखा नक्षत्र में यदि चन्द्र होगा तो उसके बुरे फल काफी कम होंगे क्योंकि इस नक्षत्र का स्वामी गुरु चन्द्र का मित्र है।जातक के मन पर गुरु का प्रभाव होगा और यदि गुरु का साथ किसी भी प्रकार से चन्द्र को मिला तो चन्द्र नीच का होते हुए भी बुरे फल नही देगा।दूसरा नक्षत्र अनुराधा होताहै और जिसका स्वामी शनि देव होते है और शनि देव को उदासी वैराग्य का कारक माना जाता है ऐसे में जातक पर नीच के चन्द्र का पूरा फल मिलेगा जिस से जातक के मन पर हर समय उदासी छाई रहती है जातक ख़ुशी के माहोल को भी अच्छी तरह महसूस नही कर पाता है।तीसरा नक्षत्र ज्येष्ठा है जिसका स्वामी बुद्ध है।अब हमे देखना होगा की बुद्ध का पंचधा मत्री चक्र के अनुसार चन्द्र से क्या सम्बन्ध बन रहा है और बुद्ध की Kundli में क्या सिथ्ती है।बुद्ध का जातक के मन पर पूर्णप्रभाव होगा और यदि बुद्ध कुंडली में अशुभ फल देने वाला हुआ जैसे की मेष लग्न में होता है तो जातक को नीच के चन्द्र के पूर्ण फल मिलेंगे।
शरांश :-
जैसे सूर्य जो की हमारी आत्मा का कारक होता है और तुला राशि में नीच का होता है।तुला में सूर्य उतने बुरे फल विशाखा नक्षत्र में नही देगा जितने बुरे फल स्वाति नक्षत्र में देगा क्योंकि विशाखा नक्षत्र का स्वामी गुरु तो स्वाति का स्वामी राहू होता है। ऐसे में जातक की आत्मा पर राहू का पूर्ण दुस्प्रभाव होगा।साथ ही Kundli में कोई ग्रह यदि नीच का होकर भी अष्टकवर्ग में 5या 6 बिंदु उस नीच की राशि में लिय हुए है तो भी उसका इतना बुरा फल जातक को नही मिलता है।अत: मेरा यही कहना है की हमे किसी भी ग्रह के शुभाशुभ फल को देखते समय उसके सभी पहलुओं को देखना आवश्यक होता है। कुंडली में दशा का भी ध्यान रखना बहुत जरुरी होता है
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