Navgreh Fast : कैसे करें नवग्रह व्रत जिससे हो फल की प्राप्ति


Navgreh Fast : भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जेसे हम हर रोज किसी न किसी देवता कि पूजा करते है जाप दान आदि करते है तो उसमे एक विधि व्रत की कही गयी है जिस के बारे में हम आज बात कर रहें है | व्रत उस देवता को खुश करने के लिए किया जाता है इस के दो फैयदे है एक तो कार्य सिद्ध हो जाता है दूसरा हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहता है यदि हम म्नोविगेय्निक कि माने तो हमारे शरीर के लिए हमें सप्ताह में एक वार व्रत अवस्य करना चईये इस से पाचन किर्या सही रहती है | रही बात ज्योतिष कि तो इस से बुरे प्रभाव् देने वाला ग्रह भी शांत हो जाता है सुभ फल देने लगता |

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Navgreh Pooja kaise kren

सूर्य देव के व्रत की विधि-सूर्य का व्रत रविवार को करें। यह व्रत शुक्लपक्ष के पहले (जेठे) रविवार से आरम्भ करके वर्षपर्यन्त तीस या कम से कम 12 व्रत करें। उस रोज केवल गेहूं की रोटी, घी और लालखाण्ड के साथ या गेहूं का गुड़ से बना दलिया या हलवा इलायची डालकर दान करके शेष का दिन में ही सूर्यास्त से पहले भोजन करें। नमक बिल्कुल न खाएं। भोजन से पूर्व हो सके तो लालवस्त्र पहनकर ऊपर चक्रोक्त बीज-मन्त्र की माला का जप करें। तदनन्तर सूर्य को गन्धाक्षत, रक्तपुष्प दूर्वायुक्त अर्घ्य प्रदान करें। अपने मस्तक में लालचन्दन का तिलक करें। जब व्रत का अन्तिम रविवार हो तो हवन पूर्णाहुति के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। ऐसा करने से सूर्य का अशुभ फल शुभ फल में परिणत हो जाएगा। तेजस्विता बढ़ेगी। नेत्ररोग, चर्मरोग एवम् अन्य शारीरक रोग भी शान्त होंगे।

  • सूर्य शान्ति का सरल उपचार- लाल वस्तुओं का विशेष उपयोग करें- जैसे- लालचादर, परना तथा तांबे की अंगूठी का पहनना।

चन्द्र देव के व्रत की विधि-
चन्द्रमा का व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेटे) सोमवार को प्रारम्भ करके 54 या 10 व्रत करें। व्रत के दिन श्वेत वस्त्र धारण करके ऊपर चक्र लिखित बीज मन्त्र की 11 या 3 माला जप करें। सफेद फूलों से पूजन करके सफेद चन्दन का तिलक करें। मध्याह्न के समय नमक के बिना दही-चावल, धी. खाण्ड का यथाशक्ति दान करके स्वयं भोजन करें। जब व्रत का अन्तिम सोमवार हो. उस दिन हवन-पूर्णाहुति करके खीर खाण्ड से ब्राह्मण व बटुकों को भोजन कराएं। इस व्रत के करने से व्यापार में लाभ, मानसिक कष्टों से शान्ति होती है। विशेष – कार्य सिद्धयर्थ भी यह पूर्ण फलदायक होता है।

  • चन्द्र शान्ति का सरल उपचार –  सफेद जुराब, रुमाल, सफेद वस्त्र, दूध,दहीं का उपयोग, चान्दी की अंगूठी पहनना।

मंगलवार के व्रत की विधि–
यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) मंगलवार से प्रारम्भ करके 21 या 45 व्रत करने चाहिए। हो सके तो यह व्रत आजीवन रखें। बिना सिला हुआ लालवस्त्र धारण करके बीजमन्त्र की 1, 5. या 7 माला जप करें। नमक सेवन -न करें, यह जरूरी है। उस दिन गुड़ से बने हलवे का या लड्डुओं का दान करें और स्वयं भी खाए। गुड़ से बना कुछ हलवा आदि बैल को भी खिलाए। मंगलवार का व्रत ऋण-हर्ता तथा सन्तति-सुखप्रद है। जब व्रत का अन्तिम मंगलवार हो, उस दिन हवन-पूर्णाहुति करके लालवस्त्र, तांबा, मसूर, गुड़, गेहू तथा नारियल का दान करें। ब्राह्मणों तथा बच्चों को मीठा भोजन कराए।

  • मंगल शान्ति का सरल उपचार– लाल रंग की वस्तुओं का उपयोग, रात को लालवस्त्र पहनें, तांबे के बर्तनों का प्रयोग, तांबे की अंगूठी पहनना।

बुध देव का व्रत की विधि –
इस व्रत को शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) बुधवार से प्रारम्भ कर 21 या 45 व्रत करें। हरा वस्त्र धारण करके बीज मन्त्र की 17 या 3 माला जप करना चाहिए। उस दिन भोजन में नमक रहित, खाण्ड- घी से बने पदार्थ, जैसे मूगी का बना हुआ हलवा, मूंगी की बनी मीठी पंजीरी या मूंगी के लड्डुओं का दान करें। फिर तीन तुलसी पत्र, गंगाजल या चरणामृत के साथ लेकर स्वयं भी उपरोक्त पदार्थ खाएं। व्रत के अन्तिम बुधवार को हवन- पूर्णाहुति करके छोटे बच्चों या अन्न हीन नियुक को मूंगी युक्त भोजन कराकर हरा वस्त्र, मूंगी आदि का दान भी करें। इस व्रत से विद्या, धन-लाम, व्यापार में तरक्की तथा स्वास्थ्य लाभ होता है। अमावस का व्रत करने से भी बुध ग्रह जन्य नेष्ट फल से मुक्ति मिलती है।

  • बुध शान्ति का सरल उपचार– हरा रंग, हरे वस्त्र तथा श्रृंगार की अन्य वस्तुएं, हरा रुमाल आदि रखना, कांसी के बर्तन में भोजन, बुधाष्टमी का व्रत।

बृहस्पति देव के व्रत की विधि–
यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेटे) गुरुवार से आरम्भ करें। तीन वर्ष पर्यन्त या 16 व्रत करें। उस दिन पीत वस्त्र धारण करके बीज मन्त्र की 11 या तीन माला जप करें। पीत पुष्पों से पूजन-अर्घ्य दानादि के बाद भोजन में चने के बेसन की घी-खाण्ड से बनी मिठाई, लड्‌डू या हल्दी से पीले या केसरी चावल आदि ही खाएं और इन्हीं का दान करें। जब व्रत का अन्तिम गुरुवार हो तो हवन-पूर्णाहुति के बाद ब्राह्मण व बटुकों को लड्‌डू भोजन कराएं। स्वर्ण, पीत-वस्त्र, चने की दाल आदि का दान करें। यह व्रत विद्यार्थियों के लिए बुद्धि तथा विद्याप्रद है। धन की स्थिरता तथा यश वृद्धि करता है। अविवाहितों के लिए स्त्री प्राप्ति प्रद सिद्ध होता है।

  • बृहस्पति शान्ति का सरल उपचार– पीले वस्त्र, रुमाल आदि, पीले फूल धारण करना, सोने की अंगूठी पहनना।

शुक्र देव के व्रत की विधि –
इस व्रत को शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) शुक्रवार से प्रारम्भ कर, 31 या 21 व्रत करें। श्वेत वस्त्र धारण करके बीज मन्त्र की 3 या 21 माला जपें। भोजन में चावल, खाण्ड या दूध से बने पदार्थ ही सेवन करें। यही पदार्थ यथाशक्ति सम्भव हो तो एकाक्षी (एक आंख वाले) भिक्षुक को या श्वेत गाय को दें। जब व्रत का अन्तिम शुक्रवार हो, तब हवन-पूर्णाहुति के बाद खीर खाण्ड से बने पदार्थ ब्राहमण बटुकों को खिलाएं। चांदी, श्वेत वस्त्र, खाण्ड, चावल का दान करें। इस व्रत से स्त्रीसुख एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।

  • शुक्र शान्ति का सरल उपचार–सफेद वस्त्र, सफेद रुमाल, सफेद फूल धारण करना आदि, गाय को हरा घास या पेड़ा देना, शिवपूजन।

शनि देव के व्रत की विधि :-
इस व्रत को शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) शनिवार से आरम्भ करे। व्रत 51 या 31 करने चाहिएं। व्रत के दिन काला वस्त्र धारण करके बीज मन्त्र की 19 या तीन माला का जप करें। फिर एक बर्तन में शुद्ध जल, काले तिल, काले फूल या लवंग (लौंग), गङ्गा जल तथा शक्कर, थोड़ा दूध डालकर पश्चिम की ओर मुंह करके पीपल वृक्ष की जड़ में डाल दें। भोजन में उड़द के आटे का बना पदार्थ, पंजीरी, कुछ तेल से पका हुआ पदार्थ कुत्ते व गरीब को दें तथा तेल पक्व वस्तु के साथ केला व अन्य फल स्वयं प्रयोग में लाना चाहिए। यही पदार्थ दान भी करें। व्रत के अन्तिम शनिवार को हवन-पूर्णाहुति के बाद तेल में पकी हुई वस्तुओं को देने के बाद काला वस्त्र, केवल उड़द तथा देसी (चमड़े का) जूता तेल लगाकर दान करें। इस व्रत से सब प्रकार की सांसारिक परेशानी दूर हो जाती है। झगड़े में विजय होती है। लोह-मशीनरी, कारखाने वालों के व्यापार में उन्नति होती है।

  • शनि शान्ति का सरल उपचार–रुमाल आदि घर के परदे, जूते, जुराब, घड़ी का पट्टा, काले रंग के धारण करें।

राहु-केतु के व्रत की विधि–शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) शनिवार से ही यह व्रत भी शुरु करना चाहिए। व्रत 18 करें। काला वस्त्र धारण करके 18 या 3 बीज मन्त्र की माला जपें। तदनन्तर एक बर्तन में जल, दूर्वा और कुशा लेकर, पीपल की जड में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवडी, भुग्गा तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। इस बल से शत्रु भय दूर होता है तथा राज पक्ष से विजय मिलती है।

  • राहु केतु शांति का सरल उपचार– नीला रुमाल ,नीली घड़ी का पट्टा,नीला पैन,और लोहे की अंगूठी पहने।

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FAQ’s

1. नवग्रह व्रत किस धर्म में महत्वपूर्ण है?

नवग्रह व्रत हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें नौ ग्रहों की पूजा की जाती है जो मनुष्य के जीवन पर प्रभाव डालते हैं।

2. नवग्रह व्रत कब से शुरू होता है?

नवग्रह व्रत का आरंभ शुक्रवार को होता है। इस व्रत को पूरे सप्ताह तक अनुसरण किया जाता है, जिसमें नौ ग्रहों की पूजा की जाती है।

3. नवग्रह व्रत क्यों मनाया जाता है?

नवग्रह व्रत को मनाकर व्यक्ति अपने जीवन में स्थिरता, सौभाग्य और सुख-शांति की कामना करता है। यह व्रत नौ ग्रहों के फलक की रक्षा करने में मदद करता है।

4. नवग्रह व्रत में क्या खाना चाहिए?

नवग्रह व्रत में व्रतार्थी को सदा पर्णव्रत या सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए। इसमें फल, सब्जियां, दाल आदि खाने में सहायक होते हैं।

5. नवग्रह व्रत को कैसे करें?

नवग्रह व्रत में अहिंसा, सच्चाई, त्याग, दान, सदाचार और शुद्धता के साथ प्रारम्भ करना चाहिए। इस व्रत में नौ प्लेटेट्स की पूजा को ऊँगन के सामने रखकर की जाती है |

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