Raksha bandhan 2024 कब मनाएं रक्षा बंधन क्या है मुहूर्त और भद्रा काल

Raksha bandhan 2024 :- रक्षा बंधन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। बदले में, भाई अपनी बहनों की सुरक्षा का वचन देते हैं और उन्हें उपहार देते हैं। रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जुलाई-अगस्त के महीने में पड़ता है।

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यह त्योहार केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसी भी प्रकार के पवित्र रिश्ते को भी दर्शाता है। Raksha Bandhan का त्योहार भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कहीं इसे “राखी पूर्णिमा” कहा जाता है, तो कहीं “सलूनो” या “नारियल पूर्णिमा”। इस दिन को मुख्य रूप से भाई-बहन के आपसी प्रेम और समर्पण के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

यह दिन परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है और उन्हें एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर देता है। Raksha Bandhan का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी बहुत बड़ा है। यह त्योहार समाज में भाई-बहन के रिश्ते की महत्ता को दर्शाता है और उन्हें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का एहसास कराता है। इस त्योहार के माध्यम से लोग एक-दूसरे के प्रति अपने स्नेह और आदर को प्रकट करते हैं।

रक्षा बंधन के दिन का प्रारंभ विशेष पूजा और मंत्रोच्चारण से होता है। बहनें पूजा थाल सजाती हैं जिसमें राखी, चावल, दीपक और मिठाई होती है। वे अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी आरती उतारती हैं। इसके बाद भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी सुरक्षा का वचन देते हैं। यह एक बहुत ही भावुक और प्रेमपूर्ण क्षण होता है। रक्षा बंधन के त्यौहार को मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं।

इनमें सबसे प्रसिद्ध कथा है इंद्राणी और इंद्र की, जिसमें इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर राखी बांधकर उन्हें असुरों से विजयी होने का आशीर्वाद दिया था। इसी प्रकार, द्रौपदी और श्री कृष्ण की कथा भी बहुत प्रसिद्ध है। जब श्री कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा के लिए उनकी कलाई पर एक कपड़े का टुकड़ा बांधा था, तब से यह प्रथा शुरू हुई थी।

Raksha Bandhan कब मनाएं
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार जुलाई-अगस्त के महीने में पड़ता है। यह दिन धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण होता है। श्रावण पूर्णिमा को विशेष रूप से Raksha Bandhan के लिए शुभ माना जाता है क्योंकि यह दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों को समर्पित है। रक्षा बंधन के लिए सही दिन और समय का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसे मनाने के लिए सबसे शुभ समय को मुहूर्त कहा जाता है।

मुहूर्त का चयन ज्योतिषीय गणनाओं और पंचांग के अनुसार किया जाता है। इस दिन का शुभ मुहूर्त आमतौर पर पूर्णिमा तिथि के दौरान होता है, लेकिन यह भद्रा काल से मुक्त होना चाहिए। भद्रा काल एक अशुभ समय होता है जिसमें कोई भी महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए। रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल में Raksha Bandhan निषेध माना जाता है।

भद्रा काल के दौरान किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है। इसलिए, इस दिन का मुहूर्त चुनते समय भद्रा काल को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है। Raksha Bandhan का त्योहार आमतौर पर सुबह से लेकर दोपहर तक मनाया जाता है। इस दौरान बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उन्हें मिठाई खिलाती हैं। भाइयों के द्वारा उपहार देने का सिलसिला भी चलता रहता है।

यह एक पारिवारिक मिलन का अवसर होता है जिसमें सभी सदस्य एक साथ मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं। इस दिन का महत्व केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में आपसी सद्भाव और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है। लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ भी इस त्योहार को मनाते हैं और एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

इस प्रकार, रक्षा बंधन का त्योहार समाज में प्रेम और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है। Raksha Bandhan के दिन का सही मुहूर्त जानने के लिए पंचांग की मदद ली जा सकती है। पंचांग में भद्रा काल और शुभ मुहूर्त की जानकारी दी जाती है। इससे लोग सही समय पर राखी बांधकर इस त्योहार को सही तरीके से मना सकते हैं।

Raksha Bandhan योग :-
रक्षाबंधन पर कई तरह के शुभ योग बनने जा रहे हैं शुभ लोगों का आपके जीवन पर बहुत ही अच्छा प्रभाव देखने को मिल सकता है अगर हम हिंदू पंचांग के अनुसार बात करें तो रक्षाबंधन पर जी शुभ योग का निर्माण हो रहा है उसका नाम सर्वार्थ सिद्धि योग रवि योग है तथा जो शोभन योग है वह पूरा दिन चलेगा जो सर्वार्थ सिद्धि योग है वह सुबह जाने की प्रातः काल 5:53 से लेकर 8:10 तक रहेगा और अगर हम रवि योग के बारे में बात करें तो रवि योग प्रात 5:53 से लेकर 9:05 तक रहेगा । लेकिन आप यदि भद्रा का विचार करते है तो ये योग आपके लिए नही है :

Raksha Bandhan भद्रा काल :-
भद्रयोग भारतीय ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार जब हम ग्रहों की गणना करते हैं एवं ग्रहण के अनुसार ग्रहों का अध्ययन करते हैं तो उसमें भद्र योग काफी महत्वपूर्ण मानी गई है इस साल 2024 में भद्र का साया रक्षाबंधन पर देखने को मिल सकता है और भद्रा का जो योग है वह सुबह 6:05 से शुरू हो जाएगा और यह भद्र योग दोपहर 1:32 तक रहेगा इस दौरान जो सावधानी रखनी होगी

अर्थात जिस नियम का पालन करना है वह नियम इस प्रकार है कि आपने भूलकर भी भादरा के दौरान राखी नहीं बांधनी है क्योंकि बदरा में यदि राखी बांधते हैं तो वह अशुभ माना जाता है क्योंकि भद्र एक ऐसा समय है जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए सनातन धर्म में अच्छे कर्मों के लिए अर्थात अच्छे मंगरिक कार्यों के लिए समय का विशेष ध्यान रखा जाता है

भद्रा काल को इसमें छोड़ना पड़ता है क्योंकि भद्राकाल अशुभ माना गया है शास्त्रों की एवं कुछ लौकिक तथ्यों की मां ने तो भद्र काल में जो हम कार्य करते हैं उसे अनहोनी हो सकती है क्योंकि इस काल में बंदी की राखी नुकसान दायक साबित होती है भद्रा काल में तो गृह प्रवेश विवाह से जुड़े कार्यक्रम भी नहीं किए जाते कोई पूजा अनुष्ठान भी भद्रा के समय में नहीं किया जाता ।

निष्कर्ष :-
रक्षा बंधन का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से भी बहुत बड़ा है। इस दिन भाई-बहन का रिश्ता और भी मजबूत हो जाता है और उनके बीच का प्रेम और स्नेह और बढ़ जाता है। Raksha Bandhan का त्यौहार हमें अपने रिश्तों की महत्ता का एहसास कराता है और हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करने की प्रेरणा देता है।

रक्षा बंधन का त्योहार हमें यह सिखाता है कि भाई-बहन का रिश्ता केवल खून का रिश्ता नहीं होता, बल्कि यह एक पवित्र बंधन होता है जिसमें एक-दूसरे के प्रति समर्पण और प्रेम होता है। यह त्योहार हमें अपने भाई-बहनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराता है और हमें उनके सुख-दुःख में साथ देने की प्रेरणा देता है। रक्षा बंधन का महत्व समाज में भी बहुत बड़ा है।

यह त्योहार समाज में आपसी सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देता है। लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ इस त्योहार को मनाते हैं और एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। इससे समाज में आपसी प्रेम और समर्पण की भावना बढ़ती है और लोग एक-दूसरे के प्रति और भी अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। इस त्योहार का महत्व केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों में भी है। इस दिन को मुस्लिम और सिख समुदाय के लोग भी मनाते हैं।

इससे यह स्पष्ट होता है कि रक्षा बंधन का त्योहार केवल एक धार्मिक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व भी है जो सभी समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है। Raksha Bandhan का महत्व पारिवारिक दृष्टिकोण से भी बहुत बड़ा है। यह त्योहार परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है और उन्हें अपने रिश्तों की महत्ता का एहसास कराता है। परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं और एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

इससे पारिवारिक संबंध और भी मजबूत होते हैं और लोग एक-दूसरे के प्रति और भी अधिक समर्पित हो जाते हैं। अंततः, रक्षा बंधन का महत्व इस बात में है कि यह हमें हमारे रिश्तों की महत्ता का एहसास कराता है और हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करने की प्रेरणा देता है। यह त्योहार हमें अपने भाई-बहनों के प्रति समर्पण और प्रेम की भावना सिखाता है और हमें समाज में आपसी सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देने की प्रेरणा देता है।

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FAQ’s

1. रक्षा बंधन कब मनाया जाता है?

रक्षा बंधन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार जुलाई-अगस्त के महीने में पड़ता है।

2. रक्षा बंधन के दिन का शुभ मुहूर्त क्या होता है?

रक्षा बंधन के लिए शुभ मुहूर्त पूर्णिमा तिथि के दौरान होता है, लेकिन यह भद्रा काल से मुक्त होना चाहिए। पंचांग के अनुसार मुहूर्त का चयन करें।

3. भद्रा काल क्या है और इसका महत्व क्या है?

भद्रा काल एक अशुभ समय होता है जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल में राखी बांधना निषेध माना जाता है।

4. रक्षा बंधन का महत्व क्या है?

रक्षा बंधन का महत्व धार्मिक, सामाजिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से बहुत बड़ा है। यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है और समाज में आपसी सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देता है।

5. रक्षा बंधन की पौराणिक कथाएँ कौन-कौन सी हैं?

रक्षा बंधन की पौराणिक कथाओं में इंद्राणी-इंद्र, द्रौपदी-श्री कृष्ण, यम-यमुनाजी और राजा बलि-भगवान विष्णु की कथाएँ शामिल हैं। इन कथाओं के माध्यम से रक्षा बंधन के महत्व और इसकी पवित्रता का एहसास होता है।

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