Shree Krishana भारत में श्री कृष्ण 7 विशेष रूप दर्शन मात्र होगा कलयाण


Shree Krishana भारत में श्री कृष्ण 7 विशेष रूप दर्शन मात्र होगा कलयाण वृंदावन वह स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने बाललीलाएं की व अनेक राक्षसों का वध किया। यहाँ की गलियाँ और कुंज गलियाँ भगवान कृष्ण और गोपियों की लीला स्थली के रूप में प्रसिद्ध हैं। यमुना नदी के किनारे स्थित यह स्थान आध्यात्मिकता और शांति का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है। वृन्दावन में पूरे वर्ष भर भक्ति और धार्मिक उत्सवों का आयोजन होता है, जैसे कि जन्माष्टमी, रासलीला, होली, और राधाष्टमी, जो श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं।

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वृन्दावन का वातावरण भक्तिमय और आध्यात्मिक होता है। यहाँ अनेक मंदिर, जैसे कि बाँके बिहारी मंदिर, इस्कॉन मंदिर, प्रेम मंदिर, और राधा रमण मंदिर, प्रमुख आकर्षण हैं। यहाँ हर गली और हर मोड़ पर भगवान कृष्ण और राधा की कथाएँ सुनाई देती हैं।वृन्दावन धाम, जिसे भगवान श्री krishana की लीला भूमि के रूप में जाना जाता है, एक पवित्र और धार्मिक स्थान है। यह उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में स्थित है और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।

वृन्दावन की यात्रा करने वाले लोग यहाँ की आध्यात्मिकता, भक्ति और प्रेम से प्रभावित होते हैं और इस धाम को अपनी आत्मा की शांति के लिए आदर्श मानते हैं। यहां श्रीकृष्ण के विश्वप्रसिद्ध मंदिर भी हैं। आज हम आपको 7 ऐसी चमत्कारी श्रीkrishana प्रतिमाओं के बारे में बता रहे हैं, जिनका संबंध वृंदावन से है। इन 7 प्रतिमाओं में से 3 आज भी वृंदावन के मंदिरों में स्थापित हैं, वहीं 4 अन्य स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं-

krishana Swaroop
  1. गोविंद देवजी, जयपुर
    रूप गोस्वामी को श्रीkrishana की यह मूर्ति वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से वि. सं. 1592 (सन् 1535) में मिली थी। उन्होंने उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया इस मूर्ति को स्थापित किया। इनके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंदजी की सेवा पूजा संभाली, उन्हीं के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंदजी का भव्य मंदिर बनवाया। गोविंद देवजी जयपुर में एक प्रमुख हिंदू मंदिर है, जो भगवान गोविंद देवजी को समर्पित है। यह मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर के बारहजीला इलाके में स्थित है और यहाँ भगवान कृष्ण की विभिन्न अवतारों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर की स्थानीय और पर्यटनीय पहचान का हिस्सा है और यहाँ साल में कई त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं।इस मंदिर में गोविंद जी 80 साल से विराजे है । औरंगजेब के शासनकाल में ब्रज पर हुए हमले के समय गोविंदजी को उनके भक्त जयपुर ले गए, तब से गोविंदजी जयपुर के राजकीय (महल) मंदिर में विराजमान हैं।
  2. मदन मोहनजी, करौली
    यह मूर्ति अद्वैतप्रभु को वृंदावन में कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। मदन मोहनजी का मंदिर करौली, राजस्थान में स्थित है और यह भगवान कृष्ण के मदन मोहन रूप को समर्पित है। यह मंदिर अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। करौली का मदन मोहनजी मंदिर, भगवान krishana के प्रति असीम भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। पहले सेवा-पूजा के लिए यह मूर्ति मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी और चतुर्वेदी परिवार से मांगकर सनातन गोस्वामी ने वि.सं. 1590 (सन् 1533) में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित की। बाद में क्रमश: मुलतान के नमक व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहां मदनमोहनजी का विशाल मंदिर बनवाया। मुगलिया आक्रमण के समय इन्हें भी भक्त जयपुर ले गए पर कालांतर में करौली के राजा गोपालसिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहनजी की मूर्ति को स्थापित किया। तब से मदनमोहनजी करौली (राजस्थान) में ही दर्शन दे रहे हैं।
  3. गोपीनाथजी, जयपुर
    श्री krishana की यह मूर्ति संत परमानंद भट्ट को यमुना किनारे वंशीवट पर मिली और उन्होंने इस प्रतिमा को निधिवन के पास विराजमान कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंपी। बाद में रायसल राजपूतों ने यहां मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इस प्रतिमा को भी जयपुर ले जाया गया, गोपीनाथजी मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था और इसे जयपुर के तत्कालीन महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने बनवाया था। मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी शैली की अद्वितीय छटा को प्रस्तुत करती है और यहाँ की मूर्तियाँ अत्यंत सुंदर और आकर्षक हैं। गोपीनाथजी वहां पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजमान हैं।मंदिर परिसर में भगवान गोपीनाथजी की मूर्ति अत्यंत भव्य और सुंदर है। यहाँ पर नियमित रूप से पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और विभिन्न धार्मिक उत्सवों का आयोजन होता है। जनमाष्टमी, राधाष्टमी और अन्य त्योहारों के समय मंदिर विशेष रूप से सजा होता है और यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं।गोपीनाथजी का मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह जयपुर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ की शांत और भक्तिमय वातावरण में आने वाले श्रद्धालु आध्यात्मिक शांति और आनंद का अनुभव करते हैं।
  4. जुगलकिशोर जी, पन्ना
    भगवान श्री krishana की यह मूर्ति हरिरामजी व्यास को वि.सं. 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यासजी ने उस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित किया। बाद में ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में बुंदेला शासकों द्वारा करवाया गया था। मंदिर की वास्तुकला बुंदेली शैली की अद्वितीय छटा को प्रस्तुत करती है, और इसकी भव्यता और सुंदरता देखने लायक है। मंदिर परिसर में भगवान जुगलकिशोर जी की मूर्ति अत्यंत आकर्षक और मनोहारी है, जो भक्तों के बीच अत्यधिक श्रद्धा का केंद्र है। यहां भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षों तक बिराजे पर मुगलिया हमले के समय जुगल किशोरजी को उनके भक्त ओरछा के पास पन्ना ले गए। पन्ना (मध्य प्रदेश) में आज भी पुराने जुगलकिशोर मंदिर में दर्शन दे रहे हैं।यहाँ पर नियमित रूप से पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और धार्मिक उत्सवों का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। जन्माष्टमी, राधाष्टमी, और होली जैसे प्रमुख त्योहार यहाँ विशेष धूमधाम से मनाए जाते हैं। पन्ना के जुगलकिशोर जी मंदिर में भक्तों को एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है और यह मंदिर उनकी आस्था और भक्ति का प्रमुख केंद्र है। पन्ना के इस मंदिर की यात्रा करने वाले श्रद्धालु यहाँ की शांत और पवित्र वातावरण में भगवान krishana और राधा जी के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को अनुभव करते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भी इसे विशेष मान्यता प्राप्त है।
  5. राधारमणजी, वृंदावन
    गोपाल भट्ट गोस्वामी को गंडक नदी में एक शालिग्राम मिला। वे उसे वृंदावन ले आए और केशीघाट के पास मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया। एक दिन किसी दर्शनार्थी ने कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए शालिग्रामजी तो ऐसे लगते हैं मानो कढ़ी में बैगन पड़े हों। यह सुनकर गोस्वामीजी बहुत दुखी हुए पर सुबह होते ही शालिग्राम से राधारमण की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गई। यह दिन वि.सं. 1599 (सन् 1542) की वैशाख पूर्णिमा का था। वर्तमान मंदिर में इनकी प्रतिष्ठापना सं. 1884 में की गई। उल्लेखनीय है कि मुगलिया हमलों के बावजूद यही एक मात्र ऐसी प्रतिमा है, जो वृंदावन से कहीं बाहर नहीं गई। इसे भक्तों ने वृंदावन में ही छुपाकर रखा। इनकी सबसे विशेष बात यह है कि जन्माष्टमी को जहां दुनिया के सभी krishana मंदिरों में रात्रि बारह बजे उत्सव पूजा-अर्चना, आरती होती है, वहीं राधारमणजी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है, मान्यता है ठाकुरजी सुकोमल होते हैं उन्हें रात्रि में जगाना ठीक नहीं।
  6. राधाबल्लभजी, वृंदावन
    भगवान श्री krishana की यह सुंदर प्रतिमा हित हरिवंशजी को दहेज में मिली थी। उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गांव में आत्मदेव ब्राह्मण की बेटी से हुआ था। पहले वृंदावन के सेवाकुंज में (संवत् 1591) और बाद में सुंदरलाल भटनागर (कुछ लोग रहीम को यह श्रेय देते हैं) द्वारा बनवाए गए लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में राधाबल्लभजी प्रतिष्ठित हुए।मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हें कामा (राजस्थान) ले गए थे। वि.सं. 1842 में एक बार फिर भक्त इस प्रतिमा को वृंदावन ले आए और यहां नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया, तब से राधाबल्लभजी की प्रतिमा यहीं विराजमान है।
  7. बांकेबिहारीजी, वृंदावन
    मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी हरिदासजी की आराधना को साकार रूप देने के लिए बांकेबिहारीजी की प्रतिमा निधिवन में प्रकट हुई। स्वामीजी ने इस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलों के आक्रमण के समय भक्त इन्हें भरतपुर ले गए। वृंदावन के भरतपुर वाला बगीचा नाम के स्थान पर वि.सं. 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी एक बार फिर वृंदावन में प्रतिष्ठित हुए, तब से यहीं भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। बिहारीजी की प्रमुख विशेषता यह है कि यहां साल में केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर में) मंगला आरती होती है, जबकि वैष्णवी मंदिरों में यह नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है।

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FAQ’s

1. भगवान श्रीकृष्ण कौन थे और उनका जीवन क्यों महत्वपूर्ण है?

भगवान श्रीकृष्ण को हिन्दू धर्म में विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था और उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक दिव्य लीलाएँ रचीं। श्रीकृष्ण का जीवन और शिक्षाएँ “महाभारत” और “श्रीमद्भगवद गीता” में वर्णित हैं। उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं में मथुरा के राजा कंस का वध, गोवर्धन पर्वत का उठाना, रासलीला, और महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश देना शामिल हैं। श्रीकृष्ण के उपदेश जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे धर्म, कर्म, भक्ति और योग पर महत्वपूर्ण हैं और उनके अनुयायियों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं।

2. श्रीकृष्ण की प्रमुख लीलाएँ और उनके पीछे की कहानियाँ क्या हैं?

बाल लीलाएँ, वृंदावन में अपने बाल्यकाल के दौरान, श्रीकृष्ण ने माखन चुराना, कालिया नाग का वध करना, और गोपियों के साथ रासलीला जैसी लीलाएँ रचीं। गोवर्धन लीला, श्रीकृष्ण ने इंद्र देव के क्रोध से गोकुलवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था। कंस वध, अपने मामा कंस के अत्याचारों से मथुरा को मुक्त कराने के लिए श्रीकृष्ण ने उसका वध किया। रासलीला, श्रीकृष्ण की रासलीला राधा और गोपियों के साथ उनके दिव्य प्रेम को दर्शाती है, जो भक्ति और प्रेम की पराकाष्ठा मानी जाती है। गीता उपदेश, महाभारत के युद्ध में अर्जुन के भ्रम को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने भगवद गीता का उपदेश दिया, जिसमें जीवन के सिद्धांतों और कर्तव्यों का विस्तार से वर्णन है।

3. श्रीमद्भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश क्या है?

कर्म योग, व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को बिना किसी फल की इच्छा के निष्काम भाव से करना चाहिए। ज्ञान योग, आत्म-साक्षात्कार और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति ही मनुष्य को मोक्ष की ओर ले जाती है। भक्ति योग, भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण ही सर्वोच्च साधना है, जिससे आत्मा का परमात्मा से मिलन संभव है।सामत्व, सुख-दुःख, लाभ-हानि, और जय-पराजय में समान भाव रखना चाहिए। धर्म, धर्म के मार्ग पर चलना ही जीवन का प्रमुख उद्देश्य है और प्रत्येक परिस्थिति में धर्म का पालन करना चाहिए।

4. श्रीकृष्ण की पूजा कैसे की जाती है और इसके लाभ क्या हैं?

भक्ति और कीर्तन: श्रीकृष्ण की स्तुति में भजन, कीर्तन, और नृत्य करना उनकी भक्ति का प्रमुख अंग है।मंत्र जाप, “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “हरे कृष्णा, हरे राम” मंत्रों का जाप किया जाता है। व्रत और उत्सव, जन्माष्टमी और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहारों पर विशेष व्रत और पूजा-अर्चना की जाती है। पूजन विधि, भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र को पंचामृत से स्नान कराकर, पुष्प अर्पण, दीपक जलाकर, और भोग लगाकर पूजा की जाती है। लाभ, श्रीकृष्ण की भक्ति और पूजा से मन को शांति, सुख और संतोष मिलता है। उनकी उपासना से जीवन के कष्टों और समस्याओं का समाधान मिलता है और व्यक्ति को दिव्य शक्ति और मार्गदर्शन प्राप्त होता है। यह आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की ओर ले जाती है।

5. भगवान श्रीकृष्ण के प्रमुख धाम और तीर्थ स्थान कौन-कौन से हैं?

वृंदावन, यह स्थान भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं का केंद्र है और यहाँ पर कई प्रमुख मंदिर हैं जैसे बांके बिहारी मंदिर, इस्कॉन मंदिर, और राधा रमण मंदिर। मथुरा, भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है। यहाँ कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और द्वारकाधीश मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। द्वारका, गुजरात में स्थित यह स्थान श्रीकृष्ण की राजधानी थी। यहाँ द्वारकाधीश मंदिर प्रमुख तीर्थ स्थल है। गोकुल, मथुरा के पास स्थित यह स्थान भगवान कृष्ण के बाल्यकाल के अनेक लीलाओं का स्थल है। गोवर्धन पर्वत, यह पर्वत भगवान कृष्ण द्वारा उठाए जाने के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ परिक्रमा करना भक्तों के लिए एक प्रमुख धार्मिक क्रिया है।

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