What is Brahmastra : ब्रह्मास्त्र ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित एक अत्यन्त शक्तिशाली और संहारक अस्त्र है जिसका उल्लेख संस्कृत ग्रन्थों में कई स्थानों पर मिलता है। इसी के समान दो और अस्त्र थे- ब्रह्मशीर्षास्त्र और ब्रह्माण्डास्त्र, किन्तु ये अस्त्र और भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मास्त्र प्राचीन भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में सबसे महत्वपूर्ण और रहस्यमयी हथियारों में से एक है।
इस अस्त्र का उल्लेख महाभारत और रामायण जैसे महान ग्रंथों में मिलता है। ब्रह्मास्त्र का निर्माण ब्रह्मा जी द्वारा किया गया था। इसे अत्यंत विनाशकारी और शक्तिशाली हथियार माना जाता है। इस लेख में हम Brahmastra के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
ब्रह्मास्त्र का महत्व केवल इसकी विनाशकारी शक्ति में ही नहीं है। यह अस्त्र आत्म-संयम, धर्म और न्याय का प्रतीक है। इसका उपयोग केवल अत्यंत आपातकालीन स्थितियों में ही किया जाता है। महाभारत में, अर्जुन और अश्वत्थामा ने इस अस्त्र का उपयोग किया था। रामायण में, भगवान राम ने रावण के विरुद्ध इसका उपयोग किया था। ब्रह्मास्त्र का उपयोग करते समय इसके परिणामों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है।
यह दिव्यास्त्र परमपिता ब्रह्मा का सबसे मुख्य अस्त्र माना जाता है। एक बार इसके चलने पर विपक्षी प्रतिद्वन्दी के साथ साथ विश्व के बहुत बड़े भाग का विनाश हो जाता है। यदि एक Brahmastra भी शत्रु के खेमें पर छोड़ा जाए तो ना केवल वह उस खेमे को नष्ट करता है
बल्कि उस पूरे क्षेत्र में १२ से भी अधिक वर्षों तक अकाल पड़ता है। और यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा दिए जाएं तब तो मानो प्रलय ही हो जाता है। इससे समस्त पृथ्वी का विनाश हो जाएगा और इस प्रकार एक अन्य भूमण्डल और समस्त जीवधारियों की रचना करनी पड़ेगी।
महाभारत के युद्ध में दो ब्रह्मास्त्रों के टकराने की स्थिति तब आई जब ऋषि वेदव्यासजी के आश्रम में अश्वत्थामा और अर्जुन ने अपने-अपने Brahmastra चला दिए। तब वेदव्यासजी ने उस टकराव को टाला और अपने-अपने ब्रह्मास्त्रों को लौटा लेने को कहा। अर्जुन को तो ब्रह्मास्त्र लौटाना आता था, लेकिन अश्वत्थामा ये नहीं जानता था और तब उस Brahmastra को उसने उत्तरा के गर्भ पर छोड़ दिया। उत्तरा के गर्भ में परीक्षित थे जिनकी रक्षा भगवान श्री कृष्ण ने की।
Brahmastra के प्रकार : –
ब्रह्मास्त्र के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषता और शक्ति है। कुछ प्रमुख प्रकारों में अग्नि ब्रह्मास्त्र, जल ब्रह्मास्त्र, वायु ब्रह्मास्त्र और पृथ्वी ब्रह्मास्त्र शामिल हैं। इन अस्त्रों का उपयोग विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, अग्नि ब्रह्मास्त्र आग की शक्ति को नियंत्रित करता है। जल ब्रह्मास्त्र जल की शक्ति को नियंत्रित करता है।
ब्रह्मास्त्र और उसकी विध्वंसक क्षमताएं :
दुनिया का पहला परमाणु बम छोड़ा था अश्वत्थामा ने। आधुनिक काल में जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर ने गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया। उन्होंने महाभारत में बताए गए ब्रह्मास्त्र की संहारक क्षमता पर शोध किया और अपने मिशन को नाम दिया ट्रिनिटी (त्रिदेव)। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 का बीच वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह कार्य किया। 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया।
वास्तव में महाभारत में परमाणु बम का प्रयोग हुआ था। 42 वर्ष पहले पुणे के डॉक्टर व लेखक पद्माकर विष्णु वर्तक ने अपने शोधकार्य के आधार पर कहा था कि महाभारत के समय जो Brahmastra इस्तेमाल किया गया था वह परमाणु बम के समान ही था।
डॉ. वर्तक ने 1969-70 में एक किताब लिखी ‘स्वयंभू’। इसमें इसका उल्लेख मिलता है। प्राचीन भारत में कहीं-कहीं ब्रह्मास्त्र के प्रयोग किए जाने का वर्णन मिलता है। रामायण में भी मेघनाद से युद्ध हेतु लक्ष्मण ने जब ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहा तब श्रीराम ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि अभी इसका प्रयोग उचित नहीं, क्योंकि इससे पूरी लंका साफ हो जाएगी।
Brahmastra एक परमाणु हथियार है जिसे दैवीय हथियार कहा गया है। माना जाता है कि यह अचूक और सबसे भयंकर अस्त्र है। जो व्यक्ति इस अस्त्र को छोड़ता था वह इसे वापस लेने की क्षमता भी रखता था लेकिन अश्वत्थामा को वापस लेने का तरीका नहीं याद था जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग मारे गए थे।
रामायण और महाभारतकाल में ये अस्त्र गिने-चुने योद्धाओं के पास था।रामायणकाल में जहां यह विभीषण और लक्ष्मण के पास यह अस्त्र था वहीं महाभारतकाल में यह द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृष्ण, कुवलाश्व, युधिष्ठिर, कर्ण, प्रद्युम्न और अर्जुन के पास था। अर्जुन ने इसे द्रोण से पाया था। द्रोणाचार्य को इसकी प्राप्ति राम जामदग्नेय से हुई थी। ऐसा भी कहा गया है कि अर्जुन को यह अस्त्र इंद्र ने भेंट किया था।
Brahmastra कई प्रकार के होते थे। छोटे-बड़े और व्यापक रूप से संहारक। इच्छित, रासायनिक, दिव्य तथा मांत्रिक-अस्त्र आदि। माना जाता है कि दो ब्रह्मास्त्रों के आपस में टकराने से प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्त पृथ्वी के समाप्त होने का भय रहता है। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक Brahmastra के परिणाम दिए गए हैं।
वेद-पुराणों आदि में वर्णन मिलता है जगतपिता भगवान ब्रह्मा ने दैत्यों के नाश हेतु Brahmastra की उत्पति की। ब्रह्मास्त्र का अर्थ होता है ब्रह्म (ईश्वर) का अस्त्र। प्राचीनकाल में शस्त्रों से ज्यादा संहारक होते थे अस्त्र। शस्त्र तो धातुओं से निर्मित होते थे लेकिन अस्त्र को निर्मित करने की विद्या अलग ही थी।प्रारंभ में ब्रह्मास्त्र देवी और देवताओं के पास ही हुआ करता था। प्रत्येक देवी-देवताओं के पास उनकी विशेषता अनुसार अस्त्र होता था। देवताओं ने सबसे पहले गंधर्वों को इस अस्त्र को प्रदान किया। बाद में यह इंसानों ने हासिल किया।
आधुनिक दृष्टिकोण : –
आज के समय में, ब्रह्मास्त्र को केवल एक पौराणिक कथा के रूप में देखा जाता है। लेकिन इसके पीछे छुपे संदेश और शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। ब्रह्मास्त्र हमें सिखाता है कि शक्ति का उपयोग अत्यंत संयम और विवेक के साथ करना चाहिए। आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के युग में, Brahmastra की कहानी हमें नैतिकता और आत्म-संयम की महत्वपूर्णता की याद दिलाती है। इसका संदेश आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि प्राचीन समय में था।
प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मंत्र, तंत्र और यंत्र के द्वारा उसका संचालन होता है। ब्रह्मास्त्र अचूक अस्त्र है, जो शत्रु का नाश करके ही छोड़ता है। इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही हो सकता है, अन्यथा नहीं।महर्षि वेदव्यास लिखते हैं कि जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है वहां 12 वर्षों तक पर्जन्य वृष्टि (जीव-जंतु, पेड़-पौधे आदि की उत्पत्ति) नहीं हो पाती।’ महाभारत में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मास्त्र के कारण गांव में रहने वाली स्त्रियों के गर्भ मारे गए।
गौरतलब है कि हिरोशिमा में रेडिएशन फॉल आउट होने के कारण गर्भ मारे गए थे और उस इलाके में 12 वर्ष तक अकाल रहा।सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि) में हुए अनुसंधान से ऐसे कई नगर मिले हैं, जो लगभग 5000 से 7000 ईसापूर्व अस्तित्व में थे। इन नगरों में मिले नरकंकालों की स्थिति से ज्ञात होता है
इन्हें किसी अकस्मात प्रहार से मारा गया है। इसके भी सबूत मिले हैं कि यहां किसी काल में भयंकर ऊष्मा उत्पन्न हुई थी। इन नरकंकालों का अध्ययन करन से पता चला कि इन पर रेशिएशन का असर भी था।
दूसरी ओर शोधकर्ताओं के अनुसार राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग 10 मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है, जहां पर रेडियो एक्टिविटी की राख की मोटी परत जमी है। इस परत को देखकर उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला गया
जिसके समस्त भवन और लगभग 5 लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।मुंबई से उत्तर दिशा में लगभग 400 किमी दूरी पर स्थित लगभग 2154 मीटर की परिधि वाला एक विशालकाय गड्ढा मिला है। शोधकर्ताओं के अनुसार इसकी आयु लगभग 50,000 वर्ष है। इस गड्ढे के शोध के पता चलता है कि प्राचीनकाल में भारत में परमाणु युद्ध हुआ था।
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निष्कर्ष : –
ब्रह्मास्त्र एक अद्वितीय और रहस्यमयी अस्त्र है, जिसकी कहानियाँ भारतीय पौराणिक कथाओं में अमर हैं। इसका महत्व केवल इसकी विनाशकारी शक्ति में नहीं, बल्कि उसके पीछे छुपे नैतिक और आध्यात्मिक संदेश में है। Brahmastra का सही उपयोग करने के लिए अत्यंत संयम, साधना और विवेक की आवश्यकता होती है। यह हमें सिखाता है कि शक्ति का सही उपयोग केवल धर्म और न्याय के लिए ही होना चाहिए। ब्रह्मास्त्र की कहानी आज भी हमें नैतिकता और आत्म-संयम की महत्वपूर्णता की याद दिलाती है।